विद्या;- मनहरण घनाक्षरी छंद
ऊँचे ओहदेदारों की, हो जाता गुनाह माफ,
गरीबों की गुस्ताखी पर, मच जाता शोर है।
पद के रसूखदार, तोड़ते कानून रोज,
बलवानोंअमीरों पे, चलता न जोर है।
हजारों गुनाहगार, कैद से भी छूट जाते,
लाचार इंसान यहाँ, होता कमजोर है।
ऊपर वाले की जब, नजरें इनायत हो,
दूध का है धूला हुआ , हीरे का जो चोर है।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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