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गीता – सुधीर कुमार

Sudhir Kumar

छंद – गीता
मात्रा — 24
यति — 14,10
2122 2122 , 2122 21

राम की महिमा निराली , देख लें सब लोग ।
धूप में भी छाँव करते , राम ऐसा योग ।।
नाम जिसने भी लिपा है , पा गया सुखधाम ।
रंग में इनका रँगा जो , बिक गया बिन दाम ।।

राम सागर हैं दया के , जो मिटाते शोक ।
जा शरण में माँ अहिल्या , पा गई सत लोक ।।
खल दशानन का किया था , मुक्त कर संहार ।
दस्यु रत्नाकर हुआ था , सिंधु भव के पार ।‌।

आ रहे हैं राम फिर से , आज सबके द्वार ।
आ सभी स्वागत करें हम , प्रेम से इस बार ।।
दीप घर-घर में जलाएँ , स सजाएँ गेह ।
फूल राहों में बिछाएँ , ईश से कर लें नेह ।।

है निमंत्रित सब सनातन , धर्म वाले देख ।
राम का अभिषेक कर फिर, खींच अनुपम रेख ।।
नाम अपना दर्जकर हम , अब रचें इतिहास ।
इस हमारे कर्म से हो , राम का फिर वास ।।

सुधीर कुमार , किशनगंज , बिहार

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