मृत भुवन में मैं था
कब से भटक रहा,
जीवन बदल गया जब पाया गुरु ज्ञान।
रोज कुछ छाँटकर,
प्यार पुष्प बाँटकर,
सब की ख्याल रखते मान अपनी संतान।
माता की आंचल-छाया,
पिता सा आशीष पाया,
गोद में बैठा के हमें कराया सुधा का पान।
सदा उनकी आंखों से
करुणा बरसती थी,
हमने प्रत्यक्ष देखा जिंदगी में भगवान।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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