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चुप्पी कलम की- गौतम भारती

gautam bharti

कलम! तू क्यों चुप है ?
कुछ तो बोल ।
इंसानों की इंसानियत पर बोल ,
काबिलों की काबिलियत पर बोल ।
बोल हुनरबाजों का हुनर भी,
और फिर, हैवानों का भंडाफोड़ ।।
कलम! तू क्यों चुप है ?
कुछ तो बोल ।

दिलेरी वर्षों से
जो तुमने दिखाई ।
हाथों में पटने की
वो जो कसमें है खायी ।
फिर वो पुरानी , संगत में लौट आ ।
चिपक अंगुलियों से, बैठ जरा पास आ ।।
मैं मानता हूँ वक़्त ने
मुझको है मारा ।
पर तू भी तो बैठा था,
बनके बेचारा ।।
आ फिर से तू फिरकी में ,
अफसरशाही का पोल खोल ।
कलम! तू क्यों चुप है ?
कुछ तो बोल ।

देख-देख! लुट रही
अर्थों(धन) में इंसानियत ।
तलवे चाटने को बाबुओं का
गिर पड़ी काबिलियत ।
आवामों में दम कहाँ ?
कि कर सके विरोध ।
जब काबिल ही बैठा हो
उन बाबुओं के गोद ।।
देख निगल गया निवाला
गणन थैला की मोल ।
अरे! कुछ तो बोल ।
कलम! तू क्यों चुप है ?
कुछ तो बोल ।

हाँ, मैं कवि हूँ
मैं कहता हूँ, तू करता है ।
कभी घिसता, कभी लिखता है ।
हतक से गिरता, फिर संभलता है ।।
कर संक्रांति संग दुःख गौतम की2
अपनी जुबां में बोल ।
तू कड़वे बोल या मीठे बोल
मेरी जां! कुछ तो बोल ।
कलम! तू क्यों चुप है ?
कुछ तो बोल ।।

इल्मियत का इल्म वो
झुलस रहा दरख्त पे ।
आत्मा का हथियार बन
नज़र गड़ा तू वक़्त पे ।।
वक़्त वो भी आएगा
कटार बन तू छाएगा ।
मुलाजिमों के जुर्म पर
परचम तू फहराएगा ।।
एक बार लगा तू
सारे जहां का जोर ।
कलम! तू क्यों चुप है ?
कुछ तो बोल ।।

गौतम भारती
U.M.S हिंगवा मुशहरी

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