प्रभाती पुष्प
जलहरण घनाक्षरी छंद
हमेशा मगन रहें
ईष्ट का भजन करें,
वृथा नहीं नष्ट करें, समय को पल भर।
कदम बढ़ाएं सदा
फूंक-फूंक कर हम,
जीवन में पड़ता है, चलना संभल कर।
कठिनाई सहने से
जीवन निखर जाता,
गुलाब भी खिलता है कांटों बीच पल कर।
रहें घुल मिल कर
चीनी और पानी जैसा,
समय के अनुरूप, खुद को बदलकर।
जैनेन्द्र प्रसाद “रवि’
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