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जिंदगी का सफ़र- जयकृष्णा पासवान

Jaykrishna

घटा बनके मस्त गगन में,
कजरी संग झूम जाता है।
“राहों के मुसाफिर”
यादों में बहकर।।
सपनों का ख़्वाब सजाता है,
“चुपके से देख कर फूल और”
कलियां मनही मनमुस्कुराती है ।
झम-झम करती बरसा रानी ,
दरिया का सफर बन जाता है।।
घटा बनके मस्त गगन में
कजरी संग झूम जाता है।
“मन पंछी बन उड़ चला”
जाने कौन सा देश।।
सफर का कोई ठिकाना नहीं,
हिय- प्रेम का देश ।
होले-होले सूरज और चंदा,
पारस मणि बन जाता है।।
सुबह में गीरे ओस की बूंदे,
मोती बन इतराता है।
मौसम के दीवाने इंद्रधनुष
बनकर”जिंदगी का सफर –
बन जाता है” ।।
घटा बनकर मस्त गगन में,
कजरी संग झुक जाता है ।।
जीवन एक सफ़र है मानो,
ग़म की पत्तियां और सुखों की
डालियों पर खिल जाता है।
“बहती फिजाओं में खुशबू” इसकी
रोम-रोम में महक जाता है ।।
झूमती हुई फूलों की वादियों पर
भंवरों का सफर बन- जाता है ।
घटा बनके मस्त गगन में
कजरी संग झुम जाता है।।


जयकृष्णा पासवान
स०शि०उच्च विद्यालय बभनगामा, बाराहाट (बांका)

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