जीवन
दिन और वर्ष की तरह ही होता है जीवन,
दिन में सूर्य उदित होते अरुणिमा के संग,
सुबह का सुहावना होता पल, जैसे बालापन,
ओज-तेज बढ़े तो मानो जैसे आया युवापन,
दोपहर का समय पसीने, कमाई, खटाई का समय,
धीरे-धीरे सूरज ढलने लगता है, जैसे हो अस्ताचल,
रात्रि का समय में, क्या किये, क्या नहीं, करते आत्म-आकलन,
अधिक विस्तार में क्या कहूं, यही तो है हमारा समग्र जीवन,
वर्ष में भी छ: ऋतु होते हैं, वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, हेमन्त, शीत,
उत्साह, पसीने, पतझड़, आनंद, इसी में तो जीवन जाता बीत ।
…..गिरीन्द्र मोहन झा
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