यदि श्रृंगार के पीछे
दर्द छुपा कर जीना
ही ठीक होना होता है तो,
हाँ, ठीक हूँ मैं।
यदि काजल की रेखा खींच
आँसुओं की नदी के लिए
बाँध बनाना ही
ठीक होना होता है तो,
हाँ, ठीक हूँ मैं।
यदि लाली लगे होंठों पे
झूठी मुस्कान सजा कर
तकलीफ़ छुपा हँसना ही
ठीक होना होता है तो,
हाँ, ठीक हूँ मैं।
यदि रात से ही एकटक अंतहीन आकाश को देखते
हुए भोर कर देना ही
ठीक होना होता है तो,
हाँ, ठीक हूँ मैं।
यदि लोगों के बीच होकर भी न होना
आँसू होते हुए भी न रोना
एक खोखली ज़िंदगी गुजारना ही
ठीक होना होता है तो,
हाँ सच मानो, बहुत ही ठीक हूँ मैं।
डॉ स्वराक्षी स्वरा
मध्य विद्यालय हनुमान नगर बेलदौर, खगड़िया
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