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दसों दिशाएँ – बाल कविता – राम किशोर पाठक

दसों दिशाएँ – बाल सुलभ कविता

जहाँ सूरज रोज निकलता है।
जिधर से नभ में चढ़ता है।।
पूरब उसको कहते प्यारे।
सुबह रोज हीं दिखता प्यारे।।
दिन बीते जब होती शाम।
सूरज करने चला विराम।।
वही दिशा है पश्चिम प्यारे।
रात होने की करे इशारे।।
सुबह सूरज जब देख रहे हो।
हाथ फैलाए अगर खड़े हो।।
दक्षिण दायाँ हाथ बताया।
बायीं ओर उत्तर कहलाया।।
चार दिशाओं के आगे भी।
चार कोण को जानें सभी।।
पूरब- दक्षिण मिले जहाँ।
अग्नि-कोण होता वहाँ।।
पूरब- उत्तर जहाँ मिलते।
ईशान-कोण उसे कहते।।
दक्षिण-पश्चिम जो मिल जाएँ।
नैऋत्य का कोण बनाएँ।।
उत्तर-पश्चिम ज्यों हीं मिलते।
वायव्य-कोण का नाम निकलते।।
मूल दिशाएँ चार हीं होती।
चारो कोणों पर मिलते मोती।।
ऊपर नीचे यदि मिलाएँ।
कुल दस होती हैं दिशाएँ।।
सोच-समझ जो कदम उठाए।
उसकी जय गूँजे दसों दिशाएँ।।

रचयिता:- राम किशोर पाठक।
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज पटना।
संपर्क- 9835232978

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