ईर्ष्या द्वेष का जो चारो ओर डेरा है,
नफरतों का दिल में देखो बसेरा है,
एक दूसरे से आगे निकलने के लिए,
द्वंद चलता ये तेरा और ये मेरा है।
गहन तिमिर नैराश्य फैला रही है,
खुशियाँ देखो नही रास आ रही है,
स्वयं के घर में उजाला हो इसलिए,
छल दम्भ पाखंड घर बना रही है।
चलो प्रेम का दीप मिलकर जलाएं,
मन के अंदर के अँधेरों को हम मिटायें,
फुलझड़ी और पटाखे की शोर में,
हम अपने मन के अंदर के शोर को मिटायें।
मिठाइयों सी सबके जीवन में मिठास हो,
जुबान चाशनी सी मीठी और खास हो,
रंगीन लड़ियों से सजाये घर आँगन,
खुशी और उमंग हमारे मन के पास हो।
रूचिका
रा.उ.म.वि. तेनुआ.गुठनी सिवान
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