चौदह वर्ष बाद जब लौटे श्रीराम
प्रजा ने दीपों से सजा दिए अयोध्या नगरी के मकान,
खुशियों की दीपावली मनाकर
प्रजा ने की श्रीराम जी का स्वागत और हार्दिक सम्मान।
उसी दिन से हम सभी मनाते हैं दीपों की दीपावली त्योहार,
सजाते हैं दीपों से घर- दरवाज़े
ईश्वर को पहनाते फूलों का हार।
सभी नये -नये कपड़े पहनते
बच्चे फूलझड़ी,पटाखे छोड़ते,
महिलाएँ सुन्दर- सुन्दर व्यंजन बनाती
औफिर पूजा की थाल सजाती।
सभी पुरुष मिलकर हुक्कापाती में आग लगाते
लक्ष्मी घर दलिद्दर बहार हैं बोलते,
फिर आग लगे हुक्कापाती को
ले जाकर सड़क पर हैं रखते
ईश्वर का नाम वो लेकर
पाॅ॑च बार उसको वो फाॅ॑गते।
ये सब करके जब घर वो आते
सबसे पहले बड़ों के आगे शीश नवाते ,
बेसन से बने सूखे बड़ी को दाॅ॑तों से काटते
फिर छप्पन प्रकार भोजन में भोग लगाते।
इस त्योहार में दे हम अपने
झूठ , चोरी, नशा हिंशा और व्यभिचार जैसे पॅ॑च -पापों का बलिदान,
जलाएँ सबके साथ प्रेम का दीपक
यही है असली भारतीयों की पहचान।
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नीतू रानी,
पूर्णियाॅ॑ बिहार।