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दीपोत्सव हमें मनाना है – रामकिशोर पाठक

 

हर तरफ घोर अँधियारा है, एक दीप हमें जलाना है।

आज रात दिवाली की, दीपोत्सव हमें मनाना है।

घर का कोना साफ हो गया, दीपों से इसे सजाना है।

घर ऑंगन रंगोली भरकर, दीपोत्सव हमें मनाना है।

शरद ऋतु शैशव हुआ, कार्तिक माह सलोना है।

साफ सफाई संपन्न हुआ, दीपोत्सव हमें मनाना है।

घनी अंधेरी रात अमावस, प्रकाश चतुर्दिक फैलाना है।

कर लक्ष्मी गणेश का पूजन, दीपोत्सव हमें मनाना है।

जगमगाती लड़ियाँ लगाकर, छत से इसे लटकाना है।

दरवाजे पर बंदनवार बनाकर, दीपोत्सव हमें मनाना है।

बच्चे छोड़ेंगे फुलझडियाँ और संग हमें मुस्काना है।

सबको खुशियाँ बाँट बाँटकर, दीपोत्सव हमें मनाना है।

बाहर रौशन हो गई दुनिया, मन में उजास अब लाना है।

कर ईर्ष्या घृणा का परित्याग, दीपोत्सव हमें मनाना है।

यह पर्व प्रतीक पूर्णता का, वैचारिक पूर्णता हमें लाना है।

समदर्शी भाव जगाकर खुद में, दीपोत्सव हमें मनाना है।

रिश्ते नाते जैसे अब तो, लगता कोई खिलौना है।

सब रिश्तों की अहमियत बताकर, दीपोत्सव हमें मनाना है।

प्रेम समर्पण विश्वास रहा न, बस स्वार्थ का रोना है।

उनको स्वार्थ की सीमा बताकर, दीपोत्सव हमें मनाना है।

पर पीड़ा से दुखी न होते, दिखावे में नैन भिंगोना है।

पीड़ा का अब मर्म सिखाकर, दीपोत्सव हमें मनाना है।

इस पर्व के नायक श्री राम, उनकी महिमा गाना है।

राम के हीं आदर्श अपनाकर, दीपोत्सव हमें मनाना है। 

राम किशोर पाठक

प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश

पालीगंज, पटना

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