देवभाषा संस्कृत
उन्नति हो नित देवभाषा की ,
हो तब नित जीवन की आस ।
प्रेम , सद्भाव , विश्वास जगत में ,
हो तब हर जन के पास ।।
यह जीवन की भाषा है अमृत ,
यह धन्य हमें नित करती ।
मंत्र विद्या के शीर्ष चरण में ,
सबके मनोवांछित फल भी धरती ।।
इस भाषा की गहराई है
या इस भाषा की चतुराई ।
प्रेम यहाँ हर शब्द में मिलता ,
है इसकी महती प्रभुताई ।।
ज्ञानियों के लिए यह भाषा ,
सचमुच तप का बड़ा बल है ।
अध्ययन के लिए यह भाषा ,
विद्यार्थियों का बड़ा संबल है ।।
देवभाषा का जितना प्रचार प्रसार करें ,
उतना ही अधिक श्रेयस्कर है ।
स्वर्णिम ज्ञान रश्मि प्रस्फुटित होने में ,
यह अनुपम शुभ अवसर है ।।
प्रेम और ज्ञान दोनों से जुड़ता ,
संस्कृति का बड़ा उन्नायक ।
यह देवों की अमृत भाषा है ,
यह सचमुच अधिक शांतिदायक ।।
यह भाषा एक दूजे से जोड़े ,
जगत में महती ज्ञान कराए ।
यह सद्गुण और सद्विचार को ,
जगत में जन जन तक पहुँचाए ।।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड बंदरा , जिला मुजफ्फरपुर

