हिंदी अमरतरंगिनी, जन-जन की है आस।
सच्चे उर जो मानते, रहती उनके पास।।
हिंदी भाषा है मधुर, देती सौम्य मिठास।
शब्द-शब्द से प्रीति का, छलक रहा उल्लास।।
जन-जन की भाषा सुघर, सरस अलंकृत भाव।
शब्द व्यंजना है अमित, करिए अंतस् चाव।।
बिंदी है यह हिंद की, हो न कभी अपमान।
जैसे शोभित भाल पर, वैसे रखिए ध्यान।।
रोटी खाएँ हिंद की, बसे हिंद का भाव।
निज भाषा का मान हो, हिंदी से हो चाव।।
हिंदी के नित मंच पर, कहें न दूजा बोल।
अनुपम मधुरिम भाव है, कभी न इसको तोल।।
हो हिंदी का देश में, सम्यक सही प्रचार।
तभी गर्व से कह सकूँ, स्वप्न हुआ साकार।।
निज भाषा से नेह रख, अपनी संस्कृति जान।
हिंदी से ही हिंद है, सदा बढ़ाएँ मान।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
मध्य विद्यालय धवलपुरा,
सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
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