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दोहावली – रामपाल सिंह ‘अनजान’

प्रात काल वो सूर्य को, करती प्रथम प्रणाम।

सूर्य देव आशीष दें, रहे सुहाग ललाम।।

प्रातकाल से है लगी, सजा रही है थाल।

अमर सुहाग सदा रहे,सुना रही है नाल।।

काया सुभग सजा रही, सजा रही है बाल।

हाथों में है चूड़ियाॅं, प्रदीप सुंदर भाल।।

गगन तारें चमक रहे, चमक रहा राकेश।

वैसे ही परिवार को, प्रभु मत देना क्लेश।।

दीपक जलते ही रहे, हो काली जब रात।

कैसा करवा चौथ है, चमक रहे हैं गात।।

एक हाथ चलनी लिए, दूजी में ले थाल।

हॅंसता चॅंद्रमा देखती, होगी आज निहाल।।

रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’

प्रधानाध्यापक

म. वि. दरवेभदौर, पंडारक, पटना

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