पुस्तक ज्योति समान है, तम को करती दूर।
शब्द-शब्द में ज्ञान है, रस को लें भरपूर।।
गुरुवाणी का गूंजना, देता सटीक विचार।
वेद, शास्त्र, उपदेश में, छिपा हुआ आचार।।
मीरा की संजीवनी, तुलसी रस के छंद।
कबिरा के दोहे बने, वाणी जैसे चंद।।
कभी विवेकानंद-सी, वाणी में हो आग।
कभी कलाम विचार में, विज्ञानों का राग।।
जिसने पुस्तक थाम ली, बचपन से अनुराग।
उसके जीवन-पंथ में, सदा खिला सु-बाग।।
पुस्तक का अनुमान क्या, वह है ज्ञान का मूल।
जिसने उसको जोत ली, पाया जीवन फूल।।
पढ़ने की जो वृत्तियाँ, करतीं हैं उत्थान।
शब्द-भंडारों से मिले, सम्मानित स्थान।।
डिजिटल के मोह में, मत खो बैठें ध्यान।
पुस्तक से फिर जोड़ लो, जीवन का विधान।।
विश्व दिवस यह कह रहा, पुस्तक से रख मेल।
ज्ञान-विवेक-विचार का, हो जीवन में खेल।
सुरेश कुमार गौरव
‘प्रधानाध्यापक’
उ. म. वि. रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)
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