जीव न काटे काल को ;
कालहि काटे जीव ,
दुनिया ऐसी सिमट गई ,
पड़ा द्वंद्व में जीव ।
तीन गति है वस्तु की;
दान , भोग और नाश ,
उत्तम जानो दान को ,
अधमहि जानो नाश ।
सौ पूत की चाहत नही ;
एक सपूत ही होय ,
एकल चन्द्रमा गगन में,
अन्धकार सब खोय ।
समय सदा उत्तम नहीं ;
नहि हित होत समान ,
काज न छोडहिं उत्तम नर ,
ज्यों फल होत न आन ।
समय बड़ा बलवान है ;
क्या राजा ; क्या रंक ।
मरघट की रक्षा करे ,
मिलहिं बराबर अंक ।
नही करते अभिमान जन ;
नही विवेक को छोड़ ,
विकलता में पाते वही ,
जो करते रहते शोर ।
जहाँ दान तहँ धर्म है ;
जहाँ विवेक तहँ आस ,
क्षमा ,दया रखा करो ,
करो सुखद एहसास ।
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )
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