मनहरण घनाक्षरी
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“डूबते को तिनके का”
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हजारों तारों के बीच,
हमेशा चमकता है,
जैसे आसमान बीच-
एक ध्रुवतारा है।
धीर-वीर पुरुषार्थी,
दुनिया में पूजे जाते,
अकेला सूरज करे-
जग उजियारा है।
धारा बीच बह जाता,
हवा संग बलखाता,
कभी मांझी बिना नाव-
लगता किनारा है।
जीवन कठिन पथ,
धीरज धारण करें,
डूबते को तिनके का-
मिलता सहारा है।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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