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नारी की अंतर्कथा – लवली कुमारी

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नारी की अंतर्कथा

हां हां मैं नारी हूं,
पहचान नहीं मिटने दूंगी।
तप साधिका जैसी अनुसुइया
विषपान कर गई मीराबाई
यमराज से लड़
सतीत्व का बोध कराया
सावित्री ने
इतिहास नहीं भूलने दूंगी
हां हां मैं नारी हूं
पहचान नहीं मिटने दूंगी।
सदियों से चली आ रही
पन्नाधायी,रजिया सुल्तान,
जीजा बाई ,लक्ष्मी बाई
की वीर गाथाएं
बलिदान नहीं इन
वीरांगनाओं की व्य र्थ
जाने दूंगी
हां -हां मैं नारी हूं
पहचान नहीं मिटने दूंगी।
गौतम बुध ,कालिदास
तुलसीदास इन की महानता
के पीछे नारी का साथ
कुर्बानी दिया नेत्र की गांधारी ने
समर्पण नहीं व्यर्थ झुकने दूंगी
हां- हां मैं नारी हूं
पहचान नहीं मिटने दूंगी।
हौसलों की उड़ान भर
एवरेस्ट पहुंची बछेंद्री पाल
अंतरिक्ष पार की कल्पना चावला
शक्ति स्वरूपा इंदिरा गांधी
इनके जज्बे को क्षितिज से नहीं
धूमिल होने दूंगी
हां- हां मैं नारी हूं
पहचान नहीं मिटने दूंगी।
सृष्टि की हूं मैं बहुमूल्य निर्माण
जगत की जननी का है वरदान
वंश बढ़ाना है मेरी पहचान
जगत छोड़ने पर भी
पुकारते मेरा नाम
अस्तित्व नहीं घटने दूंगी
हां- हां मैं नारी हूं
पहचान नहीं मिटने दूंगी।

लवली कुमारी
उत्क्रमित मध्य विद्यालय अनुपनगर
बारसोई कटिहार

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