बरखा के आस करके थकलय नयनमा,किसनमा।
कि खेतिए पर निर्भर हय सबके परनमा किसनमा।।
जेठ, बैसाख बितल, बितलय असढ़वा,
बिना धान होले केटरो कैसे मिलतs मडवा।
रोज दिन निरखे आँख ऊपर असमनमा किसनमा।।
तेल जयसन पानी भेलय, महंगा होलय बिजली,
सरकार सूदखोर खाद-बीज मिलय नकली।
कितना दिन पेट भरतs मुफ्त में रसनमा किसनमा।।
कहीं नदी लबालब पानी रोज बरसे,
कहीं रुठल मानसून, खेत पानी बिना तरसे।
पानी खातिर तरस रहल खेत खलिहनमा, किसानमा।।
जिंदा रहे खातिर पानी सब कोय बचइह,
जरूरत से ज्यादे बिना काम नय बहईह।
नय तो रोवे खातिर तरसतो पानी लs नयनमा,किसनमा।
खेतिए पर निर्भर हय सबके परनमा किसनमा।।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि बख्तियारपुर पटना
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