पितृ तर्पण – निश्छल छंद
देख रहें हैं पूर्वज अपने, करिए जाप।
भूल गए या याद किए हैं, उनको आप।।
आश्विन आया पूर्वज रखते, तर्पण खास।
देख रहें हैं बस इतना ही, क्या है विश्वास।।
कहती संस्कृति हम-सब से यह, करें विचार।
आत्मा है अविनाशी जानें, जीवन सार।।
ग्रंथों में भी वर्णन मिलता, जाने आज।
नवयुग में सब भूल रहे हैं, ऐसा काज।।
सोलह दिन तक चलता रहता, है पितृ यज्ञ।
पक्ष महालय अपर पक्ष है, बनें न यज्ञ।।
गीता में भी वर्णन इसका, रखिए ध्यान।
पिंड दान की महता कहते, हैं भगवान।।
बाणगंगा गया जी जाए, जैसी चाह।
कठिन लगे तो घर से करना, सुंदर राह।।
पितृ-ऋण से बाहर आने का, उत्तम शोध।
“पाठक” कहता बस इतना है, तजे विरोध।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
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