चहुओर दीवाली में
छतों और दीवारों पे,
करती हैं जगमग, बल्बों की ये लड़ियांँ।
कोई उपहार लाते
मिठाई मलाई खाते,
उमंग व उत्साह में, छोड़ते फुलझडियांँ।
कहीं-कहीं रात भर
महफिलें सजती हैं,
कालीनों पे बिखरते, फूलों की पंखुड़ियांँ।
जश्न होता महलों में
शहरों के होटलों में,
गरीबों की सिसकती, उदास झोपड़ियाँ।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
0 Likes