Site icon पद्यपंकज

प्रेम पथ

प्रेम-पथ

एक मानुष काटता पत्थर अहर्निश,
बिन रुके और बिन झुके वह ले हथौड़ा,
हौशले को कर रहा मजबूत निशदिन,
नियति को बदलने का था उसको भरोसा।

पर्वत था खड़ा उस राह में उन्मुख होकर,
पर कहाँ उसको पता मानुज का सम्बल,
कर्म की पूजा करे वह नित निरंतर,
था भुजा में दम क्या कम जब मन का सम्बल।

कह गया गिरि को तुम्हें झुकना ही होगा,
मेरा है प्रण रास्ता देना ही होगा,
चीर कर सीना तुम्हारा पथ बनेगा,
आज न बन पाएगा तो कल बनेगा।

एक अकेला जानकर तू सुन ले गिरिवर,
मत समझ कमजोर ना समझो कमतर,
मैं लुडूंगा तुमसे अपने हौसले से,
ले ही लूंगा रास्ता तुझसे भी लड़कर।

है नमन दसरथ तुम्हें की तुमने गिरिवर को झुकाया,
धैर्य ,तप ,श्रम चेतना से था असम्भव कर दिखया।
प्रेमशक्ति को समर्पित यह कहानी कह रही मैं,
क्या बने कोई ताज ऐसा यह निशानी गढ़ रही मैं।

डॉ स्नेहलता द्विवेदी “आर्या”

उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज कटिहार

0 Likes

Dr. Snehlata Dwivedi

Spread the love
Exit mobile version