कलकल झरझर,
बहती है निर्झरिणी,
साहिल से टकराते ही लहरें बोलती।
प्रवाह हो अवरुद्ध,
बहती है कटकर,
जीवन में यही सीख,प्रेमरस घोलती।
अथाह है जल राशि,
करुणामय है साथी,
प्यासे को करती तृप्त,प्रीत द्वार खोलती।
पलते हैं अनमोल,
जीव गर्भ तरंगिणी,
खिलती है कुमुदिनी,उसे कहाँ तोलती।
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ममता का अवगाह,
मोती,मूंगा,सीप,शंख,
खिलते हैं शतदल,जग आहें भरते।
ऋषियों की पगडंडी,
ठहरते-गुजरते,
श्रद्धा की डूबकी लगा,ध्यान में उतरते ।
जड़ी-बुटियों से युक्त,
कंचन निर्मल नीर,
शिला,विला छोड़कर,हर दु:ख हरते।
प्रवाहित जलधारा,
सीखाती रहस्य गूढ़,
छोटी-मोटी बातों पर,विद्वेष न करते।
एस.के.पूनम।
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