कृपाण घनाक्षरी छंद
विद्या:-फाल्गुन के भाव
जंगल में नाचे मोर
कोयल मचाती शोर,
हलचल चहुंओर, आ गया फाल्गुन मास।
हाथों में गुलाल लाल
कर के गुलाबी गाल,
मोरनी की देख चाल, किसको न आती रास?
सुर्ख हैं टेसू के फूल
गोरैया उड़ाती धूल,
गम जाते सारे भूल, होली है त्योहार खास।
दूर देश बसे पिया
लगता नहीं है जिया,
तड़पत मेरा हीया, सुहाना है मधुमास।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
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