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फूल खिला माहवारी का- रत्ना प्रिया

Ratna Priya

रत्ना प्रिया

फूल खिला माहवारी का

सृजन को गति देने में, पूर्ण सहयोग है नारी का,
सृष्टि को विस्तारित करने, फूल खिला माहवारी का ।

किशोरवय में आते ही, जब कोमल कलियाँ खिलती है,
प्रकृति के वरदानस्वरुप, जननि की क्षमता मिलती है,
किशोरी का परिवर्तित रूप, अति सौम्य जब होता है,
ममता के आँचल में मानव, तब शिशु बनकर सोता है,
आशीष हस्त नारी है वो, मातृत्व की अधिकारी का।
सृष्टि को विस्तारित करने, फूल खिला माहवारी का।

पंच दिवस प्रकृति बन नारी, पीड़ा को सँजोती है,
दृढ़-भाव से उसको सहती, हँसती है ना रोती है,
संक्रमण दूर हटाने का, स्वच्छता का है सूत्र यहाँ,
अभिशाप नहीं सौभाग्य है यह, जानता है जग-जहाँ,
जैविक सुलभ प्रक्रिया मानो, लक्षण नहीं बिमारी का।
सृष्टि को विस्तारित करने, फूल खिला माहवारी का।

अबोध हैं जो नारी को, कमजोर कहकर हँसते हैं,
बेबस व लाचारी जैसी, अनुचित फब्तियाँ कसते हैं,
रजस्वला नहीं हो नारी तो, सृजन वहीं रुक जाएगा,
संसार का चक्र चलाने को, वंश कहाँ से आएगा,
माहवारी प्रकृति विधान है, माँ-रूपी अवतारी का।
सृष्टि को विस्तारित करने, फूल खिला माहवारी का।

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