फूल मनहरण घनाक्षरी
आओ बनें हम फूल,
गम सारे जायें भूल
प्रेम माल बनूं मैं,
देख तू संसार के!
बनके सुमन हार,
देश भक्त राह पडूं,
देश भक्ति प्यारी मुझे,
कहूँ ये पुकार के!
हरा रंग धरा लगे,
कर्मवीर प्रातः जगे,
छुट्टी मिले बस सखी,
दिन रविवार के!
भेद भाव नहीं करूँ,
कांटे संग सदा रहूँ,
“मनु” प्रेम बाँटू सदा,
–जीत जाती हार के!
स्वरचित:-
मनु कुमारी,
प्रखण्ड शिक्षिका,
मध्य विद्यालय सुरीगाँव, बायसी
पूर्णियाँ,बिहार
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