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बगिया के फूल – जैनेन्द्र प्रसाद रवि

Jainendra Prasad Ravi

विद्या:-रूप घनाक्षरी छंद

बच्चें लगें फूल ऐसे
गेंदा व गुलाब जैसे,
खिले खिले चेहरे पे, दिखते जब मुस्कान।

परियों की पंख लगा
उड़ते आसमान में,
दुनिया के गम से वो, होते सारे अनजान।

हर पल सच बोलें
अपना ही भेद खोलें,
निश्चल व सादगी में होते जैसे भगवान।

बड़े हो के जीवन में
जब होते कामयाब,
नापते हैं एक साथ जमीं और आसमान।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

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