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बड़ा कठिन है रे मन -अवनीश कुमार

(श्रुतिकीर्ति की अंतरवेदना)

बड़ा कठिन है रे मन!

राजरानी बनकर अवध में रहना,
और राजर्षि पति शत्रुघ्न का
भ्रातृधर्म निभाने को संकल्प लेना
और… बिन कहे
प्रिय से दूरी का व्रत ले लेना

हाय! ये काँटों-से चुभते, कसकते पल!

बड़ा कठिन है रे मन!
स्वयं को चौदह वसंतों तक रोक कर रखना

सीता, मांडवी, उर्मिला दी की अपनी-अपनी विवशताएँ —
किन्तु हाय!
इस श्रुति की बेचैनी, तन्हाई, अंतर्वेदना के स्पंदन
का किसी को समझ न आना

बड़ा कठिन है रे मन!
खुद को चौदह वसंतों तक निरंतर समझते रहना….

पति को राजधर्म निभाते रोज देखना,
और नन्हें राजकुमार को राजर्षी बन संयम से जीते देखना

और अंतस की धमस में स्थित
संवेदना का मौन विलाप सुनते रहना

बड़ा कठिन है रे मन!
ख़ुद को चौदह वसंतों तक अपलक प्रतीक्षा में बनाये रखना

तन्हाई में अपनत्व की चाह रखना,
और मोम-सी पिघलती संवेदना को
हर पल थामना,
झूठी मुस्कान ओढ़े
अवध को निर्निमेष निहारना

बड़ा कठिन है रे मन!
चौदह वसंतों तक स्वयं को समझाना…

ख़ुद ही ख़ुद से निरंतर जूझते-जूझते
थककर चूर हो जाना,
हर पल छलकते नयन को सबसे चुराना,
और चेहरे पर मुस्कान ओढ़े अडिग रहना —

बड़ा कठिन है रे मन!
स्वयं को चौदह वसंतों तक समझाना…

बिगड़े हालातों में खुद को भी सँभालना,
और अवध की समस्त राजमाताओं के
ढहते विश्वास को
राम आगमन तक थामे रखना —

बड़ा कठिन है रे मन!
चौदह वसंतों तक सबको बचाना…

अपने ही द्वंद्व से जूझते हुए,
चौदह वसंतों तक
यूँ ही जीते रहना
यूँ ही जीते जाना

बड़ा कठिन है रे मन!
चौदह वसंतों तक
बेजान होने से अवध को बचाते रहना

हर दिन उस एक दिन के लिए जीना,
जब राम-सीता-लखन कुशल लौटें,
अवध फिर से पूर्ण हों
इस आशा का दीप जलाए रखना
बड़ा कठिन है रे मन!
इस विपदा मे अवध को संभाले रखना
अवध को संभाले रखना
अवध को संभाले रखना

लेखन व स्वर:
अवनीश कुमार
बिहार शिक्षा सेवा (शोध व अध्यापन उपसंवर्ग)
व्याख्याता
प्राथमिक शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय, विष्णुपुर, बेगूसराय

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