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बदलता परिवेश

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 -: बदलता परिवेश :-

हमने देखा था….

बिलखते हुए बचपन को कूड़ा बीनते हुए,

पटरियों के किनारे हमउम्रों से निवाला छीनते हुए,

खेतो और झाड़ियों में ढोर के पीछे भागते हुए,

ईंट भट्ठों में मिट्टी के ढेर को आँकते हुए,

गैरज में लगी गाड़ियों के शीशो में झाँकते हुए,

शिक्षा के अभाव में दूसरों से अपशब्द बाँचते हुए,

दुकानों पर कप-प्लेटो को माँजते हुए,

ललचाई नज़रों से कमीजों में बटन टॉकते हुए,

अब हम सबने देखा है..

उनकी आँखों में भी कुछ बनने का सपना,

हम सबने समझा है उन्हें अब अपना,

हमने अब थामा है उनका हाथ,

हमें भी मिल रहा है अब उनका साथ,

अब वे पढ़ रहे हैं, आगे बढ़ रहे हैं,

सफलता के सर्वोच्च शिखर पर अब वे चढ़ रहे हैं,

हमें मिला है समाज और सरकार का सहयोग,

हमें विश्वास है हमारा समाज भी अब पढेगा,

हमारा देश भारत प्रगति पथ पर आगे बढेगा।

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विजय शंकर ठाकुर

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