बरखा बहार आई
मन में उमंग छाई,
मोती जैसे आसमान झमाझम बरसे।
नई – नई दूब उगी,
फसल की आस जगी,
मजदूर किसानों के देख मन हरसे।
छोटे बच्चे आंगन में
मगन हो भीग रहे,
काश आता बचपन एक बार फिर से।
बदरी बरस रही,
दामिनी चमक रही,
घर से निकलने को मेरा मन तरसे।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर पटना
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