प्रभाती पुष्प
मनहरण घनाक्षरी छंद
बाली रे उमरिया
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एक दिन राधा रानी
भरने को गई पानी,
भूल बस चली गई, गोकुल नगरिया।
देख के सुंदर गांव
ठिठक गई थी पांव,
जाने कैसे मिल गया, सांवला सांवरिया।
देख सुध बुध कोई
रात भर नहीं सोई,
दिल में जो गड़ गई, तिरछी नजरिया।
अजीब उमंग दिखे
मन में तरंगे उठे,
राम जाने कैसी आई, बाली रे उमरिया।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि‘
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