बाल मन कहाँ रुके,
कहीं नहीं वह झुके,
खेल खेले मस्त-मस्त,होए न पस्त कभी।
नदी तीर रोज जाते,
बालू से घरौंदा बने,
महल हो सपनों का,नहीं सोचते अभी।
सुबह को उठ कर,
थैला का उठाये बोझ,
खीज कर भूखे पेट,पहुंचे स्कूल सभी।
शिक्षक से शिक्षा पाये,
बन जाए होशियार,
बड़ों का चरण चुमे,पाये सम्मान तभी।
एस.के.पूनम(पटना)
0 Likes