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बाल कविता – पेंसिल – राम किशोर पाठक

पेंसिल की है बात निराली,

चलती है यह काली काली।

अब तो रंग बिरंगी है आती,

बच्चों का मन खूब है भाती।

जो मन आये वो लिख पाऍं,

गलत होने पर उसे मिटाऍं।

सरल भाव में चित्र बनाएं,

घीस-घीसकर छाप चढ़ाएं।

रहती काष्ठ के अंदर यह,

बहुत लंबी है चलती यह।

कागज हो या कोई सतह,

अपनी छाप है छोड़ती यह।

इसकी कीमत बहुत ही कम,

टूटे भूले नहीं कोई गम।

लेखनी बनती सुंदर हरदम,

सिखाती है पीसने का दम।

बच्चे संग बड़े को भाती,

अस्थायी अंकन करवाती।

पेंसिल को यह खूब सुहाती,

फूले नहीं कभी समाती.

रचयिता – राम किशोर पाठक

प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज पटना।

संपर्क – 9835232978

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