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बाल श्रमिक की व्यथा-सुरेश कुमार गौरव

suresh kumar gaurav

शिक्षा के मंदिर में जाऊं तो जाऊं कैसे!
जैसे सब बच्चे हाजरी लगाते हैं जैसे!!
है मजबूरियां मेरी और जिम्मेदारियां भी!
शिक्षा के रोज गीत गाने का इरादा बदल गया!!

कभी खेतों का जोतना,कभी ईंटों को ढोंना!
कभी अमीर बाबूओं के जूठे बर्तन उठाना!!
दिल के हैं अरमान पढ़ना और खेलना !
शिक्षा की देहरी पे जाने का इरादा बदल गया!!

बचपन की अठखेलियां और नादानियां!
उन्मुक्त हो जीवन की सारी परेशानियां!!
जहां पे था मेरा रोज आना और फिर जाना!
शिक्षा के पन्ने पलटने का इरादा बदल गया!!

मैं गीत कौन सा गाऊं,कहां खेलने जाऊं !
समय का पहरा है,वो समय कहां से लाऊं!!
कभी झूले झूलना,मिलकर खेल कूद करना!
शिक्षा के ज्ञान पाने का इरादा बदल गया!!

कौन था जिसने मुझे रोका वहां जाने से !
समाज की बेदिली और मजबूरी आने से!!
रास्ता तो मेरा वही था,किस्मत था पलटना!
शिक्षालय में जाने का इरादा बदल गया!!

बाल मजदूर निरोधक कानून भी बन गए!
सोचा अब मेरे दिन तो मानो पलट ही गए!!
फिर क्यूं काम है मेरा ? बाल मजदूरी करना!
मेरा कलम पकड़ पाने का इरादा बदल गया!!

है दोषी और अन्यायी कौन ?आप ही बता दें!
मुझे बाल मजदूरी से जरा मुक्ति तो दिला दें!!
चाहिए आजादी से पढना, खेलना और ह़ंसना!
गरीबी ने मेरा वहां जाने का इरादा बदल गया!!

सुरेश कुमार गौरव,स्नातक कला शिक्षक,पटना (बिहार)
मेरी स्वरचित मौलिक रचना
@सर्वाधिकार सुरक्षित

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