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बेटी – अरविंद कुमार अमर

Arvind Kumar Amar

(1)-छै येहा धारना दूनिया के,
बेटी पराई होते छै।
पर बिना बेटियौ के जग में,
तकदीर सब के सुतले छै।
(2)-जब बेटी हीं नय होतै त,
बेटा फेर कहाँ सेय अइतै हो।
बिन बेटी यै सृष्टि के,
सब खेल खतम होय जयतै हो।
(3)-यहि खातिर बेटियो पर आपन,
बेटा जैसन विश्वास करह,
बस दृष्टि समान राखह एकरा पर,
बस एकरो लिये कुछ खास करह।
(4)-हम फूल छिहोअ तोड़ा गोदी के,
कैरलाय थोरा सा प्यार हमरो।
हमरा एना नय मार मयो तूं,
दे जियै के अधिकार हमरो।
(5)-ऐ प्यारी-प्यारी दुनिया के, कैर लेवे दे दीदार हमरो।
हेगे मयो एना नय मार हमरा, जीयै के अधिकार दे हमरो।
(6)-मां शति अनुसुइया,नर्मदा, यशोदा,
ई सब तै नरिये रहै,
सावित्री,गायत्री, माता काली,
कल्याणी,
ई सब टा नारिये रहै।
(7)-छै सत्य सनातन दया -मया,
सब ममता के मूरते रहै ,
छै कष्ट झेलैत जीवन भर,
तैयो फिर भी नारी उपकारी रहै।
(8)-यहे कर्तव्य सदा छै सृष्टि के,
इनकर आस्तित्व मिटाबै के,
बस झूठी सान और शौकत में,
दै छै दिलाशा अपना मन कै,
फूलो से सजावल यही जीवन कै, पावैले देतिहो प्यार हमरो।
(9)-हेगे मयो ,एना नय मार हमरा ,
दे जीये के अधिकार हमरो।
यही प्यारी-प्यारी दुनिया के,
करे दे दीदार हमरो।
अरविंद कुमार अमर। उ-म-विद्यालय चातर-जिला-अररिया, (बिहार

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