रूप घनाक्षरी छंद
पानी हेतु किसानों की
नजरें तरस रहीं,
धूल उड़े सावन में देख रहे आसमान।
नमी बिना खेतों में ही
बिचड़े झुलस गए,
सीने बीच किसानों के दब गए अरमान।
पानी बिना सूनी-सूनी
नदियाँ और नहरे,
हमारे बिरान हुए खेत और खलिहान।
विकास की आंधियों में
पानी का दोहन होता,
प्रकृति के आगे आज बेबस हुआ इंसान।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर पटना
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