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भूगर्भ जल – रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान ‘

भूगर्भ जल- उज्जवला छंद


ज्ञान बहुत तेरे पास है।
मुझसे फिर रखते आस है।।
तो आओ मेरे साथ में।
हाथों को डालो हाथ में।।।

गहराई को जो नापते।
सागर के मोती भापते।।
जल संचित है भूगर्भ में।
बातें कर लें संदर्भ में।।

सागर तो जल की खान है।
खारे जल की पहचान है।।
मीठे जल तो फिर है वहीं।
भूतल में जाओ तो कहीं।।

मधु जल मिलते हैं बीच में।
जितना जाते हैं नीच में।।
खारे जल सागर हैं लिए।
मीठे जल बादल हैं दिए।।

बस मई-जून के मास में‌।
जल-संचित है तल खास में।।
हम पीने को खींचे उसे।
पाया हरदम नीचे उसे।।

बातें सब आपस में करें।
कीमत बूॅंद-बूॅंद में भरें।।
बर्बादी करना पाप है।
यह हर जीवन की माप है।।

हरियाली से ढक दो धरा।
तू श्रम करना थोड़ा जरा।।
वर्षा-जल का उपयोग हो।
जल संचित कर सहयोग हो।।


रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
प्रभारी प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दर्वेभदौर
प्रखंड भंडारक पटना बिहार


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