काली कच लहराई,
विन्यास निखर आई,
हाथों में मेंहदी लगे,प्रतीक्षा में थी खड़ी।
सोलह श्रृंगार कर,
वरमाला डाल कर,
साक्षी बने दीया-बाती,चरणों में थी पड़ी।
सवार थे अश्व पर,
धरा पर श्रेष्ठ नर,
विवाह सूत्र में बंध,जोड़ लिया था कड़ी।
बाबुल का द्वार छोर,
भींगी थी अँखियाँ कोर,
स्वामी के बाहों में आई,मधुमास की घड़ी।
एस.के.पूनम।
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