Site icon पद्यपंकज

मनहरण घनाक्षरी – जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

Jainendra

छंद:- मनहरण घनाक्षरी

नदी बीच बिना चीर
कभी ना नहाना नीर,
सबक सिखाते हमें, सांवला सांवरिया।

प्यार को जगाने हेतु
राधा को रिझाने हेतु,
छिपके कंकड़ मार, फोड़ते गगरिया।

सभा बीच बढ़ाया चीर
द्रोपती की हरी पीर,
दंग देख सभासद, महल अटरिया।

मन में विश्वास रख
कन्हैया की आस रख,
भक्ति पथ चलना है, कठिन डगरिया।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

0 Likes
Spread the love
WhatsappTelegramFacebookTwitterInstagramLinkedin
Exit mobile version