Site icon पद्यपंकज

मनहरण घनाक्षरी- जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

Jainendra

घटाएँ गरजती हैं,

बिजली चमकती हैं,

सारा जग दिखता है,

दूधिया प्रकाश में।

रात में अंधेरा होता,

बादलों का डेरा होता,

चकाचौंध कर देती,

दामिनी आकाश में।

कोई होता लाख सगा,

जब कभी देता दगा,

अपना पराया होता,

रहकर पास में।

बिना गुरु किसी को भी,

ज्ञान नहीं हुआ कभी,

पत्थर में भी देवता,

मिलते विश्वास में।

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
मध्य वि. बख्तियारपुर (पटना)

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version