रवि छिप जाता जब,
चांद आसमान तब,
सरोवर पड़ा जल
झिलमिल करता।
वर्षा ऋतु जाने पर,
शरद के आने पर,
कितना जतन करें
नदी नहीं भरता।
समय के आने पर,
सफल हो जाने पर,
अंखियों से अश्रु जल
झर-झर झरता।
चलें सदा शत् पथ,
पकड़ नवल रथ,
परिश्रम से हमारा
जीवन सवंँरता।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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