ऋषि कात्यायन की हे सुता,
यह दर्प तुम्हारा अद्भुत है।
यह रूप तुम्हारा अद्भुत है,
सौंदर्य तुम्हारा अद्भुत है।
ज्योति द्युति प्रकृति अद्भुत,
अनुराग तुम्हारा अद्भुत है।
महिषासुर मर्दनी तू माते,
प्रताप तुम्हारा अद्भुत है।
तू मोक्षदायिनी जग जननी,
माँ प्यार तुम्हारा अद्भुत है।
सहज ही तू झोली भर दे,
दरबार तुम्हारा अद्भुत है।
भक्त- युक्ति शक्ति के संग,
यह साथ तुम्हारा अद्भुत है।
प्रणाम मेरा स्वीकार करो,
माँ नाद तुम्हारा अद्भुत है।
डॉ. स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या ‘
उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज, कटिहार
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