माहवारी अभिशाप नहीं वरदान
घर की चुलबुली लड़की
आज चुपचाप खड़ी है,
पता नहीं किस दर्द से
कोने में पड़ी है।
कहीं दाग न लग जाए
इसलिए सबसे छिपा रही है,
पूजा से दूर रहने के
बहाने बना रही है।
असहनीय दर्द की पीड़ा
आंखों से जता रही है,
फिर भी मां के कहने पर
पापा के आगे मुस्कुरा रही है।
पता नहीं क्यों व्यंग्य करते हैं लोग
जब बाहर दाग लगने से वह छटपटाती है,
आख़िर इसी दाग की बदौलत तो
वह पूरी नारी कहलाती है।
क्यों न इस मुश्किल समय में
हम उनकी शक्ति बनें,
उनके चिड़चिड़े दिनों की
थोड़ी सी मस्ती बनें।
यह अभिशाप नहीं वरदान है
यह हमेशा ध्यान दें,
उन कठिन दिनों में नारी को
और अधिक सम्मान दें।
खुशबू कुमारी
जनता +2 उच्च विद्यालय परसौनी चौक, परसौनी सीतामढ़ी
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Khushboo Kumari


