प्रेम वात्सल्य की मिशाल,
मेरी मां है सबसे कमाल,
मुझे गर्व है कि मैं हूं उनका लाल,
ममता की प्रतिमूर्ति है वो बेमिशाल,
करुणा बरसाती, अपने ही लाल,
नाजों से पाला, सीने से लगाकर,
सारे गम सहती, रखती दर्द संभाल,
कभी गुस्साती, कभी प्यार की मेहर बरसाती,
धूप छांव से हमें बचाती,
सूरत देखकर सब समझ जाती,
आज तक ये बात मुझे समझ न आती,
खुद भुखे रह, बड़े चाव से मुझे खिलाती,
मैं पूछता मां, तुमने किया है भोजन,
बड़े प्यार से मुझे समझाती जैसे करती भजन,
मेरे हल्के जख्म पर, आंसू छलकाती,
उसपर अपने प्यार का मरहम लगाती,
लगा सीने से मर्म बताती,
सजगता का पाठ पढ़ाती,
अपना सर्वस्व मुझ पर लुटाती,
ऐसी मां का करता हूं चरण वंदन,
मेरी मां का प्यार, सबसे कुंदन।
विवेक कुमार
(स्व रचित एवं मौलिक)
मुजफ्फरपुर, बिहार
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