रात दिन में भी ज्यादा-
पड़ता है फर्क नहीं,
ज़ालिम मौसम देखो, ढा रहा कहर है।
जैसे -जैसे दिन ढले,
चिलचिलाती लू चले,
अब तो ये सुबह भी लगे दोपहर है।
ठंडा-ठंडा जल पीयो,
एसी, कूलर में जियो,
नहीं दिखता शीतल-पेय का असर है।
ये गर्म हवा का झोंका,
चुभता है कांटे जैसा,
तपती भट्टी में सभी नगर शहर हैं।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर पटना
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