मनहरण घनाक्षरी छंद
दही-चूड़ा,तिल खा के, सूरज है अलशाया,
कुहासे में दिखता है,
धुंधला गगन है।
पेड़ों की डालियों से शबनम टपक रही,
बह रही मंद-मंद,
शीतल पवन है।
झरोखे से पूरब में, सूरज की लाली दिखे,
छोड़ने रजाई अभी,
करे नहीं मन है।
लंबा इंतजार बाद, खरमास बीत गया,
शुभ मुहूर्त में आया,
शादी का लगन है।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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