गर्म ये हवाएं चली,वदन में आग लगी,
अप्रैल के आरंभ में, खिल रही कड़ी धूप।
अभी केवल झांकी है, मई आना तो बाकी है,
धरती को लील रही,धर के प्रचंड रूप।
जलाशय सूख रहे, सागर उबल रहे,
हमें होगा बदलना, मौसम के अनुरूप।
सबको हीं मिलकर, ढूंढना है समाधान,
पेड़ों को लगाने पर, जनता है आज चुप।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
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