दूर रख शिकवे गिले,
आपस में मिलें गले,
झूमती हैं आनंद में, गांव की ये गलियाँ।
चल रही पुरवाई,
खिल गई अमराई,
स्नेह भरे बागानों में खिलती हैं कलियाँ।
बसंत बहार आई,
चेहरे पे खुशी छाई,
पंख फैला फूलों पर, उड़ती तितलियाँ।
धरती में नमी देख,
पेड़ पौधे झूमते हैं,
पानी भरी नदियों में तैरती मछलियाँ।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर पटना
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