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रूप घनाक्षरी- जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

Jainendra

यहाँ नाग पंचमी में,

पूजे जाते नागदेव,

शंकर पहनते हैं,

बनाकर गले हार।

स्वार्थ के हो वशीभूत,

मदारी पकड़ते हैं,

जहर निकालने को,

लोग करते शिकार।

अनेक शिकारी होते,

इसके जानी दुश्मन,

प्राण रक्षा की खातिर,

छोड़ता है फूँफकार।

किसानों के फसलों को ,

चूहों से बचाता सदा,

इसको बचाने हेतु,

रवि करता गुहार।

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

म. वि. बख्तियारपुर, पटना

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